
साहू समाज गोंडा के ट्रस्टी शिव पूजन साहू ने मृत्यु भोज नहीं करने का लिया संकल्प कहा इस बचे पैसे से गरीब लड़कियों की शादी और गरीब बच्चो के शिक्षा में होगा उपयोग

साहू समाज गोंडा के ट्रस्टी शिव पूजन साहू ने मृत्यु भोज नहीं करने का लिया संकल्प कहा इस बचे पैसे से गरीब लड़कियों की शादी और गरीब बच्चो के शिक्षा में होगा उपयोग
सराहनीय पहल साहू समाज गोंडा ट्रस्ट के द्वारा अभी हाल में ही श्री राजेंद्र साहू जिनकी पांडे बाजार (विसातखाना वाली गली में) चूड़ी की दुकान थी, जो गांधी विद्या मंदिर इंटर कॉलेज के सामने रहते थे, जो श्री शिवपूजन साहू (ट्रस्टी) निवासी मोहल्ला राधाकुंड के छोटे भाई थे, जिनका देहावसान दिनांक 30 जनवरी 2023 को हो गया है। श्री शिवपूजन साहू ट्रस्टी तथा उनके परिवार द्वारा अपने भाई की मृत्योपरांत मृत्युभोज नहीं करने का निर्णय लिया गया है, जो सराहनीय पहल है। श्री साहू जी ने यह भी बताया है कि मृत्यु भोज में होने वाला खर्च का कुछ अंश साहू समाज के कोष में जमा कराया जाएगा, जो गरीब कन्याओं की शादी तथा गरीब बच्चों की पढ़ाई में खर्चा होगा। समाज हित में श्री शिवपूजन साहू तथा उनके परिवार द्वारा लिया गया यह निर्णय अत्यंत सराहनीय है तथा समाज के लिए अनुकरणीय है। श्री शिवपूजन साहू तथा उनके परिवार को इस साहसिक पहल के लिए साहू समाज गोंडा ट्रस्ट की ओर से बहुत-बहुत बधाई तथा शुभकामनाएं
मृत्युभोज खाने वाले आदमी की ऊर्जा नष्ट हो जाती है, हिंदू धर्म में मृत्युभोजका विधान ही नहीं है, लोगों को इससे बचना चाहिए :
आचार्य लक्ष्मीकांत शास्त्री कहते हैं कि हिंदू धर्म में 16 संस्कार ही बनाए गए हैं। पहला गर्भाधान संस्कार है तो वहीं, अंतिम और 16वां संस्कार अंत्येष्टि है। जब 17 संस्कार बनाया ही नहीं गया तो तेरहवीं का भोज कहां से आ गया। किसी भी धर्मग्रंथ में मृत्यु भोज का विधान नहीं है। महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है। दुर्योधन के द्वारा श्रीकृष्ण सेे भोजन कराने के आग्रह पर श्री कृष्ण ने कहा -सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनै: अर्थात जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो और खाने वाले का मन प्रसन्न हो तभी भोजन करना चाहिए। तो विचारणीय है कि किसी के मरने के बाद किसकी आत्मा प्रसन्न होगी। हमें संकल्प लेना चाहिए कि किसी के मृत्यु के बाद आत्मा की मुक्ति और उसके परिजन की शुद्धि के लिए कर्मकांड व ब्राह्मण भोज अवश्य करें। लेकिन सामूहिक भोज का हरहाल में बहिष्कार किया जाए।
आचार्यों ने कहा : मृत्युभोज बस समाज में दिखावे के लिए किया जा रहा है …
1. हजारों लोगों को खिलाना किसी भी कर्मकांड का हिस्सा नहीं है
महामंडलेश्वर स्वामी उपेंद्र पराशर ने बताया कि किसी शास्त्र में सैकड़ों हजारों लोगों को खिलाने का विधान नहीं है। श्राद्ध शब्द श्रद्धा से आया है। जो श्रद्धा से किया जाए वही श्राद्ध है। श्राद्ध पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है। हमारे महर्षियों ने एक विधान बनाया कि इसमें दस दिनों का प्रायश्चित किया जाए। इसमें तीन दिन का कर्मकांड होता है। दसम, एकादशी, और द्वादशा को कर्मकांड करना है।
2. अंतिम संस्कार में पिंडदान और महापात्र दान का विधान है
आचार्य राधाकांत शास्त्री ने बताया कि अंतिम संस्कार में दस पिंडदान कर जले शरीर के देवत्व प्राप्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और इसे दसगात्र कहा जाता है। एकादशा गात्र को पिंडदान व महापात्र दान किया जाता है। द्वादशा को मासिक पिंडदान, पितरों के लिए पिंडदान कर घर पर 13 या 16 पंडितों, रिश्तेदारों व परिवार के लोगों के साथ सामूहिक भोज को ही मृत्यु भोज कहा जाने लगा।
3. मृत्युभोज के नाम पर रुपए खर्च करना शास्त्रोक्त नहीं है ।
शोध के अनुसार मृत्युभोज पर हजारों लोगों को एकत्रित कर लाखों रुपए खर्च करना शास्त्र सम्मत नहीं है। मनु लिखते हैं- यस्यास्येन सदशनन्ति हव्यानी त्रिदिवौकस:, कव्यानि चैव पितर: किं भूतमधिकं तत:।